पूजन रामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। बिकट रूप धरि लंक जरावा।।
अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
जय जय जय अनंत अविनाशी । करत कृपा सब के घटवासी ॥
मैना मातु की हवे दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव…॥
द्वादश ज्योतिर्लिंग मंत्र
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जो यह पाठ करे मन लाई। ता पार होत है शम्भु सहाई॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। यहि अवसर मोहि आन उबारो॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। नारद शारद शीश नवावैं॥
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ website सुनावे॥